यक्षिणी साधना - यक्षिणियों के नाम एवं मंत्र
'यक्षिणी साधना'
यक्षिणी साधना -
विद्या यक्षिणी - ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।
कुबेर यक्षिणी - ॐ कुबेर यक्षिण्यै धनधान्यस्वामिन्यै धन - धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
जनरंजिनी यक्षिणी - ॐ क्लीं जनरंजिनी स्वाहा ।
चंद्रिका यक्षिणी - ॐ ह्रीं चंद्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।
घंटाकर्णी यक्षिणी - ॐ पुरं क्षोभय भगवति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा ।
शंखिनी यक्षिणी - ॐ शंखधारिणी शंखाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा ।
कालकर्णी यक्षिणी - ॐ क्लौं कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा ।
विशाला यक्षिणी - ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।
मदना यक्षिणी - ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।
श्मशानी यक्षिणी - ॐ हूं ह्रीं स्फूं स्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।
महामाया यक्षिणी - ॐ ह्रीं महामाये हुं फट् स्वाहा ।
भिक्षिणी यक्षिणी - ॐ ऐं महानादे भीक्षिणी ह्रां ह्रीं स्वाहा ।
माहेन्द्री यक्षिणी - ॐ ऐं क्लीं ऐन्द्रि माहेन्द्रि कुलुकुलु चुलुचुलु हंसः स्वाहा ।
विकला यक्षिणी - ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लैं स्वाहा ।
कपालिनी यक्षिणी - ॐ ऐं कपालिनी ह्रां ह्रीं क्लीं क्लैं क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।
सुलोचना यक्षिणी - ॐ क्लीं सुलोचने देवि स्वाहा ।
पदमिनी यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।
कामेश्वरी यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।
मानिनी यक्षिणी - ॐ ऐं मानिनि ह्रीं एहि एहि सुंदरि हस हसमिह संगमिह स्वाहा ।
शतपत्रिका यक्षिणी - ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।
मदनमेखला यक्षिणी - ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।
प्रमदा यक्षिणी - ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।
विलासिनी यक्षिणी - ॐ विरुपाक्षविलासिनी आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव क्लैं स्वाहा ।
मनोहरा यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।
अनुरागिणी यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।
चंद्रद्रवा यक्षिणी - ॐ ह्रीं नमश्चंद्रद्रवे कर्णाकर्णकारणे स्वाहा ।
विभ्रमा यक्षिणी - ॐ ह्रीं विभ्रमरुपे विभ्रमं कुरु कुरु एहि एहि भगवति स्वाहा ।
वट यक्षिणी - ॐ एहि एहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनी शीघ्रं मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
सुरसुंदरी यक्षिणी - ॐ आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा ।
कनकावती यक्षिणी - ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।
इन सभी यक्षिणियों मे अपार क्षमता है । अपने उपासक को प्रसन्न होने पर ये कुछ भी प्रदान कर सकती हैं । भौतिक सिद्धि एवं समृद्धि के लिए तथा अन्य अनेक समस्याओं के समाधान के निमित्त भी यक्षिणी - साधना निश्चित रुपेण फलदायी होती है । किन्तु एकान्त - सेवन , नियमित जप , व्रत , उपवास , भूमि - शयन , साधनाभेद से जङ्गल - श्मशान अथवा निर्जन नदी - तट जैसे स्थान में जप , आहुति आदि प्रतिबन्धों का पालन करना अनिवार्य रहता है ।
आज के युग में इतनी जटिल साधना संभव नहीं रह गई है , फिर भी प्रसङ्गवश विषय की पूर्ति के लिए यहां कुछ प्रमुख यक्षिणियों के जप - मन्त्र दिए जा रहे हैं । आस्थावान और समर्थजन चाहें तो यक्षिणी - उपासना से लाभ उठा सकते हैं । यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि सदविषय के लिए की गई साधना का फल निरापद होता है , जबकि असद ( अभिचार - कर्म , पर - पीड़न , पर - शोषण आदि ) के उद्देश्य से की गई साधना - कालान्तर में साधक को कष्ट पहुंचाती है ।
चमत्कारी यक्षिणी साधना मंत्र विधि
चमत्कारी यक्षिणी साधना
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं. यक्षिणी साधना को करने से साधक की मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं तथा इस साधना को करने से साधक को दुसरे के मन की बातों को जानने की शक्ति भी प्राप्त होती हैं, साधक की बुद्धि तेज होती हैं. यक्षिणी साधना को करने से कठिन से कठिन कार्यों की सिद्धि जल्द ही हो जाती हैं !
यक्षिणी साधना के प्रकार
यक्षिणी साधना 14 प्रकार की होती हैं जिनकी जानकारी निम्नलिखित दी गई हैं –
1. महायक्षिणी
2. सुन्दरी
3. मनोहरी
4. कनक यक्षिणी
5. कामेश्वरी
6. रतिप्रिया
7. पद्मिनी
8. नटी
9. रागिनी
10. विशाला
11. चन्द्रिका
12. लक्ष्मी
13. शोभना
14. मर्दना
यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन –
ज्योतिषों के अनुसार यदि आषाढ़ माह में शुक्रवार के दिन पूर्णिमा हैं तो यक्षिणी साधना को करने का सबसे शुभ दिन अगले सप्ताह में आने वाला गुरुवार हैं.
इसके अलावा यक्षिणी साधना को करने की शुभ तिथि श्रावण मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा हैं. यह यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन इसलिए माना जाता हैं. क्योंकि इस दिन चंद्रमा में शक्ति अधिक होती हैं. जिससे साधक को उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं !
यक्षिणी साधना की विधि –
1. यक्षिणी साधना को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूजा की सारी सामग्री को इकट्ठा कर लें.
2. यक्षिणी साधना का आरम्भ करने के लिए सबसे पहले शिव जी की पूजा सामान्य विधि से करें.
3. इसके बाद एक केले के पेड़ या बेलगिरी के पेड़ के नीचे यक्षिणी की साधना करें.
4. यक्षिणी साधना को करने से आपका मन स्थिर और एकाग्र हो जायेगा. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्रों का जाप पांच हजार बार करें.
5. जाप करने के बाद घर पहुंच कर कुंवारी कन्याओं को खीर का भोजन करायें.
यक्षिणी साधना की दूसरी विधि –
यक्षिणी साधना को करने का एक और तरीका हैं. इस विधि के अनुसार यक्षिणी साधना करने के लिए वट के या पीपल के पेड़ नीचे शिवजी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना कर लें. अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण पांच हजार बार करते हुए पेड़ की जड में जल चढाएं
शिवजी का मन्त्र –
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा
ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा
ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा
यक्षिणी साधना के नियम
1. यक्षिणी साधना को करने लिए ब्रहमचारी रहना बहुत ही जरूरी हैं.
2. इस साधना को प्राम्भ करने के बाद साधक को अपने सभी कार्य भूमि पर करने चाहिए.
3. यक्षिणी साधना की सिद्धि हेतु साधक को नशीले पदार्थों का एवं मांसाहारी भोजन का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए.
4. यक्षिणी साधना को करते समय सफेद या पीले रंग के वस्त्रों को ही केवल धारण करना चाहिए.
5. इस साधना को करने वाले साधक को साबुन, इत्र या किसी प्रकार के सुगन्धित तेल का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए तथा उसे अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए
ये प्रमुख यक्षिणियां है - 1. सुर सुन्दरी यक्षिणी, 2. मनोहारिणी यक्षिणी, 3. कनकावती यक्षिणी, 4. कामेश्वरी यक्षिणी, 5. रतिप्रिया यक्षिणी, 6. पद्मिनी यक्षिणी, 7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।
प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होकर सहायता करती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध करने के लिए किसी योग्य गुरु या जानकार से इसके बारे में जानें।
1.सुर सुन्दरी यक्षिणी : इस यक्षिणी की विशेषता है कि साधक उन्हें जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होती ही है- चाहे वह मां का स्वरूप हो, चाहे वह बहन या प्रेमिका का। जैसी रही भावना जिसकी वैसे ही रूप में वह उपस्थित होती है या स्वप्न में आकर बताती है। यदि साधना नियमपूर्वक अच्छे उद्देश्य के लिए की गई है तो वह दिखाई भी देती है। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है। देव योनी के समान सुन्दर सुडौल होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है।
2.मनोहारिणी यक्षिणी : मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के बाद यह यक्षिणी साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है कि वह दुनिया को अपने सम्मोहन पाश में बांधने की क्षमता हासिल कर लेता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट करती है। मनोहारिणी यक्षिणी का चेहरा अण्डाकार, नेत्र हरिण के समान और रंग गौरा है। उनके शरीर से निरंतर चंदन की सुगंध निकलती रहती है।
3.कनकावती यक्षिणी : कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह यक्षिणी साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है। माना जाता है कि यह यक्षिणी यह लाल रंग के वस्त्र धारण करने वाली षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा है।
4.कामेश्वरी यक्षिणी : यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख की कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में उपस्थित होकर साधक की इच्छापूर्ण करती है। साधक को जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती है तो वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है। यह यक्षिणी सदैव चंचल रहने वाली मानी गई है। इसकी यौवन युक्त देह मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है।
5.रति प्रिया यक्षिणी : इस यक्षि़णी को प्रफुल्लता प्रदान करने वाली माना गया है। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है। साधक-साधिका को यह कामदेव और रति के समान सौन्दर्य की उपलब्धि कराती है। इस यक्षिणी की देह स्वर्ण के समान है जो सभी तरह के मंगल आभूषणों से सुसज्जित है।
6.पदमिनी यक्षिणी : पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति की ओर अग्रसर करती है। यह हमेशा साधक के साथ रहकर हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाती है। श्यामवर्णा, सुंदर नेत्र और सदा प्रसन्नचित्र करने वाली यह यक्षिणी अत्यक्षिक सुंदर देह वाली मानी गई है।
7.नटी यक्षिणी : यह यक्षिणी अपने साधक की पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है। यह सभी तरह की घटना-दुर्घटना से भी साधक को सुरक्षित बचा ले आती है। उल्लेखनीय है कि नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।
8.अनुरागिणी यक्षिणी : यह यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है। अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है और यह साधक की इच्छा होने पर उसके साथ रास-उल्लास भी करती है !
मन्त्र
.मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र :॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः॥
1.सुर सुन्दरी मंत्र : ॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥
2.मनोहारिणी मंत्र :॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥
3.कनकावती मंत्र : ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥
4.कामेश्वरी मंत्र : ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥
5.रति प्रिया मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥
6.पद्मिनी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥
7.नटी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥
8.अनुरागिणी मंत्र : ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥
यक्षिणी साधना -
विद्या यक्षिणी - ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।
कुबेर यक्षिणी - ॐ कुबेर यक्षिण्यै धनधान्यस्वामिन्यै धन - धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
जनरंजिनी यक्षिणी - ॐ क्लीं जनरंजिनी स्वाहा ।
चंद्रिका यक्षिणी - ॐ ह्रीं चंद्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।
घंटाकर्णी यक्षिणी - ॐ पुरं क्षोभय भगवति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा ।
शंखिनी यक्षिणी - ॐ शंखधारिणी शंखाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा ।
कालकर्णी यक्षिणी - ॐ क्लौं कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा ।
विशाला यक्षिणी - ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।
मदना यक्षिणी - ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।
श्मशानी यक्षिणी - ॐ हूं ह्रीं स्फूं स्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।
महामाया यक्षिणी - ॐ ह्रीं महामाये हुं फट् स्वाहा ।
भिक्षिणी यक्षिणी - ॐ ऐं महानादे भीक्षिणी ह्रां ह्रीं स्वाहा ।
माहेन्द्री यक्षिणी - ॐ ऐं क्लीं ऐन्द्रि माहेन्द्रि कुलुकुलु चुलुचुलु हंसः स्वाहा ।
विकला यक्षिणी - ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लैं स्वाहा ।
कपालिनी यक्षिणी - ॐ ऐं कपालिनी ह्रां ह्रीं क्लीं क्लैं क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।
सुलोचना यक्षिणी - ॐ क्लीं सुलोचने देवि स्वाहा ।
पदमिनी यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।
कामेश्वरी यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।
मानिनी यक्षिणी - ॐ ऐं मानिनि ह्रीं एहि एहि सुंदरि हस हसमिह संगमिह स्वाहा ।
शतपत्रिका यक्षिणी - ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।
मदनमेखला यक्षिणी - ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।
प्रमदा यक्षिणी - ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।
विलासिनी यक्षिणी - ॐ विरुपाक्षविलासिनी आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव क्लैं स्वाहा ।
मनोहरा यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।
अनुरागिणी यक्षिणी - ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।
चंद्रद्रवा यक्षिणी - ॐ ह्रीं नमश्चंद्रद्रवे कर्णाकर्णकारणे स्वाहा ।
विभ्रमा यक्षिणी - ॐ ह्रीं विभ्रमरुपे विभ्रमं कुरु कुरु एहि एहि भगवति स्वाहा ।
वट यक्षिणी - ॐ एहि एहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनी शीघ्रं मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
सुरसुंदरी यक्षिणी - ॐ आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा ।
कनकावती यक्षिणी - ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।
इन सभी यक्षिणियों मे अपार क्षमता है । अपने उपासक को प्रसन्न होने पर ये कुछ भी प्रदान कर सकती हैं । भौतिक सिद्धि एवं समृद्धि के लिए तथा अन्य अनेक समस्याओं के समाधान के निमित्त भी यक्षिणी - साधना निश्चित रुपेण फलदायी होती है । किन्तु एकान्त - सेवन , नियमित जप , व्रत , उपवास , भूमि - शयन , साधनाभेद से जङ्गल - श्मशान अथवा निर्जन नदी - तट जैसे स्थान में जप , आहुति आदि प्रतिबन्धों का पालन करना अनिवार्य रहता है ।
आज के युग में इतनी जटिल साधना संभव नहीं रह गई है , फिर भी प्रसङ्गवश विषय की पूर्ति के लिए यहां कुछ प्रमुख यक्षिणियों के जप - मन्त्र दिए जा रहे हैं । आस्थावान और समर्थजन चाहें तो यक्षिणी - उपासना से लाभ उठा सकते हैं । यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि सदविषय के लिए की गई साधना का फल निरापद होता है , जबकि असद ( अभिचार - कर्म , पर - पीड़न , पर - शोषण आदि ) के उद्देश्य से की गई साधना - कालान्तर में साधक को कष्ट पहुंचाती है ।
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