Karnapishachini siddhi evam sadhana mantra vidhi

Karnapishachini siddhi
 The spiritual benefits of achieving Karna Pishachini Siddhi are significant and profound for dedicated practitioners. This siddhi connects the practitioner with the Karna Pishachini, a powerful feminine spirit or Yakshini associated with hidden knowledge and esoteric wisdom. The main benefits include:
- **Revealing Hidden Knowledge:** The siddhi grants access to secrets and truths that are typically inaccessible, providing deep insights into personal and cosmic matters.
- **Supernatural Guidance:** The practitioner receives direct answers and guidance whispered into the ear by Karna Pishachini, helping in decision-making and foreseeing future events.
- **Enhanced Intuition:** It heightens the intuitive capabilities, enabling an individual to be more aware of subtle energies and unseen aspects of reality.
- **Mystery Solving:** It aids in solving mysteries, uncovering hidden information, and understanding complex situations with clarity.
- **Confidence and Ease:** Mastery of this siddhi boosts self-confidence and eases challenging tasks through the protection and support of divine energies.
However, it is important to note that Karna Pishachini Siddhi is a powerful and esoteric practice that requires extreme care, discipline, and guidance from a knowledgeable guru. Misuse or improper practice can lead to adverse consequences. This siddhi is not for selfish purposes but for spiritual clarity, protection, and empowerment.
कर्ण पिशाचिनी के विषय में लगभग सभी तांत्रिक जानते हैं। यह एक ऐसी यक्षिणी है जो पिशाचिनी स्वरूप में आपके कानों में आकर अथवा विचारों एवं संकेतों के माध्यम से आपके प्रश्नों के जवाब देती है और इसके माध्यम से आप किसी भी प्रकार की समस्या का हल जान लेते हैं। यह साधना अत्यंत खतरनाक है इसलिए सावधानी पूर्वक पहले अपने गुरु मंत्र को या किसी योग्य गुरु के माध्यम से अपने मुख्य देवता की साधना को संपूर्ण कर लेना चाहिए। उसके बाद ही इसकी साधना करनी चाहिए। कर्ण पिशाचिनी ऐसी मान्यता है कि जो भी यक्षिणी देवलोक से निष्काषित होकर पृथ्वी पर भटक रही है। उन्ही में से किसी शक्ति को मंत्रों के माध्यम से पकड़ लेने और उसे अपने अनुरूप बनाने की एक प्रक्रिया है। इसके मंत्र की साधना से व्यक्ति। भूतकाल और वर्तमान काल की सभी बातें जान लेता है और अगर वर्षों तक इसकी साधना की जाती है तो भविष्य की घटनाएं भी व्यक्ति जानने लगता है। लेकिन नए साधकों के लिए यह साधना खतरनाक हो सकती है। इसलिए साधना करने के पूर्व अपने कुल गुरु से परामर्श ले लें।
कर्ण पिशाचिनी साधना एवं मंत्र
कर्ण पिशाचिनी की साधना का अनुष्ठान वैदिक और तांत्रिक दोनों ही विधियों से किया जा सकता है। इसे एक गुप्त त्रिकालदर्शी साधना माना गया है, जो 11 या 21 दिनों में पूर्ण होती है। यह साधना करने वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए त्रिकालदर्शी बन जाता है। इसे सामान्य विधि विधान से संपन्न नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसकी साधना करने वाले में इसके प्रति घोर आस्था, आत्मविश्वास और असहजता को झेलने की अटूट व अटल क्षमता होनी चाहिए। यही कारण है कि इसे समान्य व्यक्ति को करने से सख्त मना किया जाता है।
कर्ण पिशाचिनी साधना विधि
साधना के समय काले वस्त्र धारण करें एवं साधना काल में अनुचित बार्तालाप न करें, निराहार रहें एवं स्त्री गमन से हर स्तर पर दूर रहें। इसके विद्वान एवं सिद्ध तांत्रिकों के अनुसार कड़े नियमों के पालन में थोड़ी भी कमी या त्रुटी नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है और लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ सकती है। मूल रूप से यह कहा जाता है कि इस साधना को कोई भी साधक को अकेले नहीं करना चाहिए कोई योग्य गुरु विशेषज्ञ तांत्रिक साथ मे होना चाहिए। इस साधना को करने की कुछ विधियाँ निम्न हैं।

पहली विधि: ग्यारह दिनों तक चलने वाले कर्ण पिशाचिनी की साधना के लिए रात या दिन को चौघड़िया मुहूर्त के दौरान पीतल या कांसे की थाली में उंगली के द्वारा सिंदूर से त्रिशूल बनाएं। और फिर शुद्ध गाय का घी और तेल के दो दीपक जलाएं और उसका सामान्य पूजन करें। उसके बाद 1100 बार बताए गए मंत्र का जाप करें। इस प्रयोग को कुल 11 दिनों तक दोहराने से कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है।

मंत्र: ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा

दूसरी विधि: इस विधि को अक्सर होली, दीपावली या ग्रहण के दिन से शुरू किया जाता है और इसकी पूर्णाहूति 21वें दिन होती है। प्रयोग के लिए आम की लकड़ी के बने तख्त पर अनार की कलम से दिए गए मंत्र को 108 बार लिखते हुए उच्चारण किया जाता है। एक बार लिखने के बाद उसे मिटाकर दूसरा लिखा जाता है। अंतिम बार इसकी पंचोपचार विधि से पूजा की जाती है और फिर 1100 बार मंत्र का स्पष्ट उच्चारण के साथ जाप किया जाता है।

मंत्र: ॐ नमः कर्ण पिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे अतीतनागतवर्तमानानि सत्यं कथय मे स्वाहा

तीसरी विधि: इस प्रयोग के लिए ग्वारपाठे को अभिमंत्रित कर उसके गूदे को हाथ और पैरों पर लेप लगाया जाता है। यह प्रयोग भी 21 दिनों का है तथा प्रतिदिन पांच हजार जाप किया जाता है। इसकी 21 दिनों में सिद्धि के बाद कान में पिशाचिनी की आवाज स्पष्ट सुनी जा सकती है।

मंत्र: ॐ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा

चौथी विधि: यह विधि भी तीसरी विधि की तरह है अंतर मात्र यह है कि इसमें दिए गए मंत्र का प्रतिदिन पांच हजार जाप काले ग्वारपाठे को सामने रखकर करते हुए 21 दिनों तक सिद्धि की साधना पूर्ण की जाती है।

मंत्र: ॐ ह्रीं सनामशक्ति भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडरूपिणि वद वद स्वाहा

पाँचवी विधि: इस विधि मे गाय के गोबर के साथ पीली मिट्टी मिलाकर प्रतिदिन पूरे कमरे की लिपाई की जाती है अथवा तुलसी के चारो ओर के कुछ स्थान को लेपना चाहिए। उस स्थान पर हल्दी, कुमकुम व अक्षत डालकर आसन बिछाएं और नीचे दिए गए मंत्र का प्रतिदिन 10000 बार जाप करें। इससे कर्ण पिशाचिनी को सिद्ध किया जाता है। यह प्रयोग कुल 11 दिनों में संपन्न हाता है।

मंत्रः ॐ हंसो हंसः नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी स्वाहा

छठवीं विधि: इस विधि में विशेष यह है कि इसे रात को लाल परिधान में किया जाता है। इसका शुभारंभ घी का दीपक जलाने के बाद 10000 मंत्र जाप से किया जाता है। प्रतिदिन जाप करते हुए इसे 21 दिनों तक करने के बाद कर्ण पिशाचिनी की साधना पूर्ण होती है। इसका एक काफी

मंत्र: ॐ भगवति चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाहा

सातवीं विधि: यह विधि आधी रात को कर्ण पिशाचिनी को एक देवी के रूप में स्मरण कर किया जाता है। इसे सबसे अधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि वेद व्यास ने इस मंत्र को सिद्ध किया था। सबसे पहले मंत्र की पूजा ॐ अमृत कुरु कुरु स्वाहा! लिखकर करनी चाहिए। उसके बाद मछली की बलि देने का विधान है। जो निम्न मंत्र के साथ किया जाता है।

मंत्र: ॐ कर्ण पिशाचिनी दग्धमीन बलि, गृहण गृहण मम सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा

इस विधान के पूर्ण होने के बाद दिए गए मंत्र का जाप पांच हजार बार करना चाहिए। ध्यान रहे पूरी प्रक्रिया प्रातः सूर्योदय से पहले पूर्ण हो जाए।

मंत्रःॐ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा

इसकी पूर्णाहुति तर्पण के मंत्र “ॐ कर्ण पिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा” से की जाती है। यह प्रयोग कुल 21 दिनों में संपन्न होता है।
इस साधना से व्यक्ति अनगिनत लाभ प्राप्त कर सकता है। खासतौर से प्रश्नों के जवाब के माध्यम से धन कमाने के लिए आसान हो जाता है। लेकिन बिना किसी योग्य गुरु और गुरु मंत्र की पूर्ण अनुष्ठान किये बिना इसकी साधना करना खतरनाक साबित हो सकता है। व्यक्ति का मानसिक संतुलन बना रहे यह आवश्यक है क्योंकि कान शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। इसके माध्यम से शरीर का बैलेंस बना रहता है तो कान अगर आपका अनियंत्रित होगा तो आप के शरीर का बैलेंस भी बिगड़ जाएगा और कर्ण पिशाचिनी कान से संबंधित ही शक्ति है। इन सभी प्रयोगों के माध्यम से हम कर्ण पिशाचिनी नाम की यक्षिणी को हम सिद्ध कर लेते हैं। जब साधना कम दिनों की होती है तो वह पिशाचिनी स्वरूप में सिद्ध होती है, और जब यही साधना बढ़ जाती है तो यक्षिणी स्वरूप में सिद्ध होती है और अगर इसकी साधना 1 या 2 वर्ष से अधिक की जाती है तो यह योगिनी स्वरूप में भी सिद्ध होती है। लेकिन इसका स्वरूप सदैव नकारात्मक ही होता है। इसलिए सावधानी पूर्वक ही इसकी साधना करनी चाहिए और अपने नियंत्रण में सदैव इस शक्ति को रखना चाहिए ना कि आप इसके नियंत्रण में हो जाए।

कर्ण पिशाचिनी सिद्धि एक प्राचीन तांत्रिक साधना है, जो कर्ण पिशाचिनी नामक यक्षिणी या शक्ति को साधने की प्रक्रिया है। इसे त्रिकालदर्शी साधना माना जाता है, जिसमें साधक कान के माध्यम से अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करता है। इस सिद्धि से भूतकाल, वर्तमान और भविष्य की जानकारी प्राप्त होती है। इस साधना को बेहद खतरनाक माना जाता है और इसे सामान्य व्यक्ति बिना योग्य गुरु और उचित नियम पालन के करने से बचना चाहिए।

### कर्ण पिशाचिनी सिद्धि का महत्व और प्रभाव
- यह साधना साधक को कान के माध्यम से पिशाचिनी की आवाज सुनने लगती है, जो प्रश्नों के उत्तर देती है।
- व्यक्ति को त्रिकालदर्शी यानी भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- लंबे समय तक साधना करने पर यह यक्षिणी योगिनी स्वरूप में सिद्ध हो जाती है, जिसका स्वरूप नकारात्मक भी हो सकता है।
- इस साधना के दौरान अनुचित व्यवहार, नियमों में कमी या गलतियां साधक के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं।

### साधना विधि व नियम
- साधना के समय काले वस्त्र पहनने, निराहार रहने, और साधना काल में स्त्रियों से दूर रहने का पालन जरूरी है।
- कई प्रकार की विधियां बताई गई हैं जैसे कि सिंदूर से त्रिशूल बनाना, मंत्र जाप, अभिमंत्रित ग्वारपाठे का प्रयोग आदि।
- मंत्रों का जाप इस साधना का मुख्य अंग है, जैसे कि:
  - "ॐ नमः कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर..."
  - "ॐ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा" आदि।
- साधना 11, 21 या उससे अधिक दिनों तक की जा सकती है।

### सावधानियां
- इस साधना को बिना किसी योग्य गुरु के मार्गदर्शन के नहीं करना चाहिए क्योंकि यह मानसिक और शारीरिक हानि पहुँचा सकती है।
- साधक को मजबूत आत्मविश्वास और नियमों का पालन करना आवश्यक है।
- साधना के बाद तर्पण अनुष्ठान आवश्यक माना गया है।

कर्ण पिशाचिनी साधना के बारे में यह कहा जाता है कि यह यक्षिणी देवलोक से निष्कासित होकर पृथ्वी पर भटकती है, जिसे मंत्र और साधना द्वारा नियंत्रण में लाया जाता है। इस सिद्धि से साधक न केवल अपने और दूसरों के रहस्यों को जान सकता है, बल्कि शत्रुओं और अवरोधों को भी समाप्त कर सकता है। लेकिन इसका स्वरूप हमेशा नकारात्मक होता है, इसलिए इस साधना में अत्यंत सावधानी और गुरु की देखरेख आवश्यक है .


Comments

Popular posts from this blog

Yakshinis & Chetakas

लक्ष्मी कुबेर साधना

Yogamaya Maha Mohini Sadhana Vidhi